नीति वही - नेता वही राजा वही - प्रज्ञा वही मिट गया भेद बस दरबार और बाजार में कौड़ी के तीन आज बिकते हैं फर्क सिर्फ इतना कि कल दरबार में थे आज बाजार में खड़े हैं।
हिंदी समय में सुरजन परोही की रचनाएँ